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वसुंधरा के कट्टर समर्थक गुंजल लड़ेंगे लोकसभा अध्यक्ष बिरला के खिलाफ चुनाव

भाजपा छोड़ कांग्रेस में शामिल हुए पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के कट्टर समर्थक और पूर्व विधायक प्रहलाद गुंजल कोटा सीट पर लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को टक्कर दे सकते हैं। कांग्रेस उन्हे कोटा-बूंदी लोकसभा सीट से टिकट दे सकती है। हाड़ौती की राजनीति में गुंजल और बिरला एक दूसरे के विरोधी हैं। गुंजल के दलबदल […]

भाजपा छोड़ कांग्रेस में शामिल हुए पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के कट्टर समर्थक और पूर्व विधायक प्रहलाद गुंजल कोटा सीट पर लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को टक्कर दे सकते हैं। कांग्रेस उन्हे कोटा-बूंदी लोकसभा सीट से टिकट दे सकती है। हाड़ौती की राजनीति में गुंजल और बिरला एक दूसरे के विरोधी हैं। गुंजल के दलबदल से न सिर्फ भाजपा में बल्कि कांग्रेस में भी कई समीकरण बदल जाएंगे।

गुंजल हाड़ौती और पूर्वी राजस्थान में गुर्जर समाज के बड़े नेता हैं और अपनी फायरब्रांड इमेज के कारण कई बार विवादों में भी रहे हैं। 2003 में रामगंजमंडी और 2013 में कोटा उत्तर से विधायक रहे गुंजल इस बार विधानसभा चुनाव में कोटा उत्तर से मात्र 2486 वोटों से गहलोत सरकार के मंत्री शांति धारीवाल से चुनाव हार गए थे। गुंजल के कांग्रेस में जाने से कोटा-बूंदी के अलावा झालावाड़-बारां, भीलवाड़ा और टोंक-सवाईमाधोपुर लोकसभा सीटों पर भी असर पड़ेगा, जहां बड़ी संख्या में गुर्जर वोटर हैं।

बिरला, गुंजल, राजावत साथ बने विधायक

ओमबिरला, प्रहलाद गुंजल और भवानीसिंह राजावत तीनों एक ही समय में छात्र राजनीति में सक्रिय रहे। गुंजल 1989-91 में कोटा गवर्नमेंट कॉलेज में छात्रसंघ के अध्यक्ष भी रहे। तीनों भाजयुमो से जुड़े और तीनों को ही 2003 के चुनाव में पहली बार विधानसभा का टिकट मिला। तीनों ने ही चुनाव भी जीता। ओम बिरला ने कोटा से शांति धारीवाल को हराया जबकि प्रहलाद गुंजल ने रामगंज मंडी से गुर्जर नेता रामकिशन वर्मा को हराया। इसके बाद बिरला और राजावत वसुंधरा सरकार में संसदीय सचिव बने, लेकिन गुंजल को मौका नहीं मिला। यहीं से दोनों में राजनीतिक वर्चस्व की लड़ाई भी शुरु हो गई। गुंजल गुर्जर आंदोलन के दौरान तत्कालीन वसुंधराजे सरकार के खिलाफ हो भाजपा से बाहर हो गए। नए परिसीमन में रामगंज मंडी सीट एससी के लिए रिजर्व हो गई और कोटा सीट कोटा उत्तर औऱ दक्षिण में बंट गई। 2008 में गुंजल बूंदी जिले की हिंडौली विधानसभा सीट से एलएसडब्ल्यूपी के टिकट पर लड़कर तीसरे स्थान पर रहे, जबकि बिरला कोटा दक्षिण सीट से विधानसभा पहुंचे। भाजपा में वापसी के बाद गुंजल 2013 के चुनाव में कोटा उत्तर से शांति धारीवाल के खिलाफ चुनाव जीते, जबकि ओम बिरला फिर कोटा दक्षिण से चुने गए।

दिल्ली जाकर मजबूत होते गए बिरला

2014 के आम चुनाव में बिरला को कोटा-बूंदी लोकसभा सीट से टिकट मिला। इसके बाद वे दिल्ली में मजबूत होते चले गए। लोकसभा अध्यक्ष बनने के साथ ही उनका कद और हाड़ौती में वर्चस्व भी बढ़ गया। इसके साथ ही प्रदेश की राजनीति में बिरला वसुंधरा के बीच की दूरियां बढ़ती गईं और गुंजल वसुंधरा के नजदीक चले गए। 2023 के विधानसभा चुनाव में प्रहलाद गुंजल का टिकट तभी फाइनल हुआ जब वे बिरला के निवास पर हाजिरी देने गए। कहा जाता है कि वसुंधरा राजे के कहने पर ही गुंजल बिरला से मिले थे। विधानसभा चुनाव से पहले मुख्यमंत्री पद के दावेदारों में वसुंधरा राजे के अलावा अन्य नेताओं में एक नाम ओम बिरला का भी था। हांलाकि विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद वसुंधरा राजे की खुलकर वकालत करने वालों में गुंजल सबसे आगे थे।

सहकारिता की लड़ाई

बिरला और गुंजल के बीच लड़ाई कॉपरेटिव सेक्टर को लेकर भी है। गुंजल का परिवार इलाके में काफी वर्चस्व रखता है। कोटा सरस डेयरी (कोटा बूंदी जिला दुग्ध उत्पादक सहकारी संघ लिमिटेड) में उनके भाई श्रीलाल गुंजल अध्यक्ष रहे हैं, लेकिन पिछले साल हुए चुनाव में चैनसिंह राठौड़ अध्यक्ष चुने गए। माना जाता है कि चैनसिंह को बिरला का समर्थन रहा। बिरला के परिवार और उनके समर्थकों का नागरिक सहकारी बैंक, महिला नागरिक सहकारी बैंक, हितकारी सहकारी सभा औऱ अन्य सहकारी संस्थाओं में दखल रहा है, जिसका गुंजल विरोध करते रहे हैं।

ओम-शांति का समीकरण

दोनों की राजनीतिक अदावत में ओम बिरला और शांति धारीवाल के मधुर संबंध भी एक बड़ी वजह रही है, जिसके लिए पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भी ओम-शांति की बात करते रहे हैं। परिसीमन से पहले 2003 में बिरला और धारीवाल कोटा सीट पर एक बार आमने-सामने हुए थे। परिसीमन के बाद बिरला कोटा दक्षिण और धारीवाल कोटा उत्तर में चले गए। कोटा उत्तर में धारीवाल और गुंजल तीन बार आमने-सामने हो चुके हैं, जिनमें दो बार धारीवाल जीते। 2018 के विधानसभा चुनाव में जब गुंजल हारे तो उन्होंने बिरला पर धारीवाल की मदद करने का आरोप लगाया था। इसके बाद 2019 के लोकसभा चुनाव में बिरला के खिलाफ गुंजल खेमा सक्रिय रहा। इस बार भी विधानसभा चुनाव में मामूली अंतर से हारे गुंजल को संदेह है कि उन्हे हरवाया गया।

गुंजल की ज्वाइनिंग में पायलट-धारीवाल नहीं आए

गुंजल के दलबदल से कांग्रेस में भी हलचल है। उन्हें पार्टी में शामिल करने के लिए हुए कार्यक्रम में पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा के अलावा अशोक चांदना और धीरज गुर्जर भी मौजूद थे। ये दोनों गुर्जर नेता हैं, लेकिन सचिन पायलट कार्यक्रम में मौजूद नहीं थे। इस मौके पर गहलोत ने गुंजल को बड़ा नेता बताया। पायलट की ही तरह गुंजल भी हाड़ौती और पूर्वी राजस्थान में गुर्जर समाज में पैठ रखते हैं। पूर्व मंत्री और मौजूदा विधायक शांति धारीवाल भी कार्यक्रम में नजर नहीं आए, जिनके खिलाफ गुंजल कोटा उत्तर सीट से चुनव लड़ते रहे हैं।

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