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Shree Mahaveerji Jain Teerth : 450 साल प्राचीन जैन तीर्थ…प्रतिमा के प्राकट्य, जलाभिषेक, रथयात्रा से जुड़ी हैं रोचक परंपराएं

Shree Mahaveerji Jain Teerth Rajasthan : करौली। उत्तर भारत में श्रीमहावीरजी जैनतीर्थ अहिंसा नगरी के नाम से जाना जाता है। यहां प्रतिमा के प्राकट्य, जलाभिषेक और रथयात्रा से जुड़ी परंपराओं के किस्से काफी रोचक हैं, 450 साल पुराने इस मंदिर से बुधवार को भगवान महावीर स्वामी की रथयात्रा निकाली गई, जिसमें सामाजिक सद्भाव की झलक […]

Shree Mahaveerji Jain Teerth Rajasthan : करौली। उत्तर भारत में श्रीमहावीरजी जैनतीर्थ अहिंसा नगरी के नाम से जाना जाता है। यहां प्रतिमा के प्राकट्य, जलाभिषेक और रथयात्रा से जुड़ी परंपराओं के किस्से काफी रोचक हैं, 450 साल पुराने इस मंदिर से बुधवार को भगवान महावीर स्वामी की रथयात्रा निकाली गई, जिसमें सामाजिक सद्भाव की झलक भी देखने को मिली।

450 साल पुरानी है अहिंसा नगरी

भगवान महावीर स्वामी का यह करीब 450 साल पुराना मंदिर करौली जिले के हिंडौन उपखंड में स्थित है। जहां हर साल चैत्र में पांच दिवसीय वार्षिक मेले का आयोजन होता है, जिसमें राजस्थान ही नहीं बल्कि देशभर से जैन समाज के लोग पूजा- अर्चना करने के लिए पहुंचते हैं। इस बार यह मेला 18 अप्रैल से शुरु हो चुका है…जिसमें बुधवार को रथयात्रा का आयोजन किया गया। इस रथयात्रा में सामाजिक सद्भाव की परंपरा देखने को मिली।

रथयात्रा से सामाजिक सौहार्द का संदेश

अहिंसा नगरी श्रीमहावीरजी में विराजित भगवान महावीर स्वामी की प्रतिमा को बुधवार को जलाभिषेक के लिए मंदिर के पास बनी गंभीर नदी तक ले जाया गया। इससे पहले भगवान महावीर स्वामी की प्रतिमा को सुसज्जित रथ में विराजमान किया गया। इसके बाद सैकड़ों साल पुरानी परंपरा के तहत दलित परिवार ने पूजा-अर्चना कर यात्रा का शुभारंभ किया। यहां से मीना समाज के लोग रथ को गंभीर नदी तक लेकर पहुंचे। जहां भगवान महावीर स्वामी का जलाभिषेक और पंचामृत अभिषेक किया गया। इसके बाद गुर्जर समाज के लोग गंभीर नदी से रथयात्रा की अगवानी करते हुए मुख्य मंदिर पहुंचे। जैन समाज के हजारों लोगों के बीच यहां जाटव, गुर्जर, मीना समाज की सहभागिता की परंपरा सैकड़ों सालों से सामाजिक सौहार्द का संदेश दे रही है।

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जलाभिषेक के लिए खुलते हैं बांध के गेट

श्रीमहावीरजी जैन तीर्थ संभवतया एकमात्र ऐसा मंदिर है, जिसमें विराजित भगवान महावीर स्वामी की प्रतिमा के जलाभिषेक के लिए हर साल पांचना बांध के गेट खोलकर पानी की निकासी की जाती है। हालांकि यह परंपरा करीब एक दशक ही पुरानी है। लोगों का कहना है भगवान महावीर का मंदिर गंभीर नदी के तट पर बना है और इसी नदी के जल से भगवान महावीर के जलाभिषेक की परंपरा रही है। लेकिन, कुछ सालों से मेले के वक्त नदी में पानी नहीं बचता, ऐसे में नदी के जल से जलाभिषेक की परंपरा को कायम रखने के लिए अब हर साल पांचना बांध के गेट खोलकर पानी की निकासी की जाती है।

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भूमि से प्रकट हुई थी प्राचीन प्रतिमा

श्रीमहावीरजी जैन तीर्थ में विराजित भगवान महावीर की प्रतिमा करीब एक हजार साल पुरानी बताई जाती है। पद्मासन में विराजित भगवान महावीर स्वामी की यह मूंगवर्णी प्रतिमा करीब 450 साल पहले भूमि से प्रकट हुई थी। इस प्रतिमा के प्राकट्य की कहानी भी बहुत रोचक है। बताया जाता है जहां से प्रतिमा प्रकट हुई, वहां एक गाय अपने आप दूध देने लगती थी। कुछ दिन बाद पशुपालक को स्वप्न आया कि गाय जहां दूध दे रही है, वहां एक प्रतिमा भूमि में दबी हुई है। इसके बाद भूमि से इस प्रतिमा का प्राकट्य हुआ। इसके बाद प्रतिमा को चांदनगांव से हिंडौन ले जाने की कोशिश की गई, लेकिन मूर्ति को गाड़ी में रखने के बाद गाड़ी वहीं जाम हो जाती थी। जिसकी वजह से इसे भगवान की इच्छा समझते हुए यहीं मंदिर का निर्माण करवाया गया।

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