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LOKSABHA ELECTION2024 GUNA SEAT: ज्योतिरादित्य सिंधिया के लिए सीट के साथ साथ परिवार की साख जीतनी भी जरूरी

06:54 PM Mar 20, 2024 | Bodhayan Sharma

LOKSABHA ELECTION2024 GUNA SEAT: गुना, मध्य प्रदेश। देशभर में राजनीतिक दलों ने चुनावी बिगुल बजते ही लोकसभा चुनाव के लिए मैदान में उम्मीदवार उतारने शुरू कर दिये। परंतु इससे पहले ही कई बागी हुए नेताओं के (LOKSABHA ELECTION2024 GUNA SEAT) लिए मौका अभी आया है। जिसमें पहला नाम आता है ज्योतिरादित्य सिंधिया का। पिछले चुनाव में काँग्रेस के खेमे में चुनाव हारने वाले और इस बार भाजपा की तरफ से ही उसी सीट से चुनाव लड़ने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया और मध्य प्रदेश की गुना सीट का इतिहास और भविष्य भी जान लीजिए…

पिछला चुनाव हार गए थे सिंधिया

गुना विधानसभा सीट पर हमेशा से ही सिंधिया परिवार का एक छात्र (LOKSABHA ELECTION2024 GUNA SEAT) राज माना जाता रहा है। परंतु 2019 के चुनाव में कई सालों का रेकॉर्ड टूटा। सिंधिया परिवार 14 बार इसी सीट से सदन तक पहुंचे। काँग्रेस की स्थायी सीट के तौर पर ही इसे देखा जा जाता रहा है। 2019 में 14 साल बाद गैर काँग्रेसी और सिंधिया परिवार के बाहर के उम्मीदवार ने सिंधिया परिवार के ज्योतिरादित्य सिंधिया और काँग्रेस को मात दी।

2019 में क्यूँ बादल गुना का समीकरण

काँग्रेस का दामन छोड़ कर भाजपा में आने वाले डॉ. के पी यादव को भाजपा (LOKSABHA ELECTION2024 GUNA SEAT) ने आते ही गुना सीट पर प्रत्याशी बना दिया। तो पहला लाभ तो इस बात का मिला कि काँग्रेस के खेमे में रहते हुए ही काँग्रेस के स्थायी क्षेत्र में अपनी पकड़ मजबूत बना चुके यादव का जनाधार बना हुआ था। इसके बाद सिंधिया परिवार और ज्योतिरादित्य सिंधिया के नजदीकी और खास लोगों में शामिल होने वाले डॉ. के पी यादव के लिए जीत पाना संभव हुआ।

2019 के परिणाम और सिंधिया ने बदला निर्णय

2019 के लोकसभा परिणाम भारतीय जनता पार्टी के लिए दो तरह से फायदेमंद रहे। पहला तो गुना सीट से 14 चुनावों बाद किसी गैर सिंधिया परिवार के व्यक्ति के होते हुए जीत हासिल करना और दूसरा गुना सीट के सत्ताधारी यानि सिंधिया (LOKSABHA ELECTION2024 GUNA SEAT) परिवार के वारिस ज्योतिरादित्य सिंधिया को भाजपा में शामिल कर लेना। पूरे देश के लिए ज्योतिरादित्य सिंधिया का पार्टी बदल लेना आश्चर्य में डाल देने वाला निर्णय था। 2019 में डॉ. के पी यादव ने ज्योतिरादित्य सिंधिया को 1 लाख 25 हज़ार 549 वोटों से मात दी थी। जबकि 2014 की मोदी लहर में भी ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भाजपा के प्रत्याशी को 1 लाख 20 हज़ार 792 वोटों से चित किया था।

पहले काँग्रेस अब भाजपा, सीट वही

काँग्रेस और भाजपा के बीच अबकी बार ज्योतिरादित्य सिंधिया को अपनी साख बचाने के लिए भी चुनाव जीतना जरूरी है। वैसे उस सीट से काँग्रेस किसी को भी उतारे क्योंकि ये लगभग तय ही माना जा रहा है कि इस बार ज्योतिरादित्य सिंधिया (LOKSABHA ELECTION2024 GUNA SEAT) चुनाव जीत जाएंगे। 2014 में मोदी लहर में भी भाजपा के लिए ज्योतिरादित्य सिंधिया को चुनाव हराना संभव नहीं हो पाया। हालांकि इस बार पार्टी और उम्मीदवार दोनों ही स्थानीय मानस से मेल खाती नज़र आ रही है। ज्योतिरादित्य सिंधिया इस चुनाव के लिए खासा उत्साहित तो है ही साथ ही नए दल के साथ मैदान में उतरते हुए सावधानी भी बरतते नज़र आ रहे हैं। वैसे ये सीट और सिंधिया परिवार हमेशा से  यहाँ काँग्रेस खेमे से ही मैदान में आए हैं। ये पहली बार है जब सिंधिया परिवार का ही सदस्य काँग्रेस की बजाय भाजपा से मैदान में उतर रहा है।

उम्मीदवारों की देरी से घोषणा का काँग्रेस को भुगतना नुकसान

गुना संसदीय क्षेत्र में 8 विधानसभा क्षेत्र आते हैं। वैसे राजस्थान से मात्र 35 ही किमी दूरी पर बसा गुना संसदीय क्षेत्र क्षेत्रफल के अनुसार थोड़ा बड़ा है। भाजपा ने सिंधिया को मैदान में उतार कर अपना पासा फेंक दिया है परंतु काँग्रेस इसमें देरी कर (LOKSABHA ELECTION2024 GUNA SEAT) रही है। हालांकि ये फैसला आसान भी नहीं होने वाला परंतु देरी करने पर काँग्रेस के उम्मीदवार के पास इतने बड़े क्षेत्र में प्रचार का ज्यादा समय नहीं होगा, जिसका नुकसान काँग्रेस को झेलना पड़ सकता है। शिवपुरी, पिछोर, मुंगावली, बमोरी, कोलारस, अशोकनगर, चँदेरी और गुना विधानसभा क्षेत्राओं में कुल मिला कर 18 लाख से ज्यादा वोटर हैं। इन तक पहुँचने के लिए समय की जरूरत तो उम्मीदवार को होगी ही।

काँग्रेस किस पर खेल रही है दाव

काँग्रेस के लिए इस बार गुना लोकसभा क्षेत्र पर उम्मीदवार का चयन करना इसलिए भी आसान नहीं है क्योंकि पहले डॉ. के पी यादव और फिर ज्योतिरादित्य सिंधिया भाजपा का रुख कर चुके हैं। अब उस जगह किसी नए प्रत्याशी (LOKSABHA ELECTION2024 GUNA SEAT) को उतारना मुश्किल काम है। फिर भी यादवेन्द्र यादव का नाम चर्चा में आया। परंतु इसके बाद कई ऐसे चेहरे काँग्रेस के पास है जो यहाँ उतारे जाने की संभावना लगती है। जिसमें पहला नाम काँग्रेस के बड़े नेता दिग्विजय सिंह का है, इसके बाद पूर्व विधायकों की लिस्ट खंगाली जाए तो, हरिवल्ल्भ शुक्ला वीरेंद्र रघुवंशी भी इस सीट पर दावेदारी कर सकते हैं। हालांकि काँग्रेस अभी तक निर्णय नहीं ले पाई है। क्योंकि काँग्रेस का स्थानीय खाका इसके लिए पहले से तैयार नहीं था।

साल 2019 के समीकरण

2019 में भाजपा का मध्य प्रदेश की गुना लोकसभा सीट को जीत लेना बड़ी उपलब्धि थी। ये बिलकुल काँग्रेस के ही क्षेत्र में काँग्रेस को हरा देना था। 2019 के आंकड़े देखे जाएँ तो कुल 11 प्रत्याशी इस मैदान में उतरे थे। कुल मतदाता (LOKSABHA ELECTION2024 GUNA SEAT) 16 लाख 5 हज़ार 613 थे। महिला मतदाता 8 लाख 57 हज़ार 327 और पुरुष मतदाता 7 लाख 48 हज़ार 265 थे। जबकि इनमें से कुल 9 लाख 77 हज़ार 619 ही मतदाताओं ने अपने मत से चुनाव को परिणाम तक पहुंचाया। इस सीट पर एक भी महिला उम्मीदवार ने चुनावी पर्चा नहीं भरा था। जबकि नए आंकड़ों के अनुसार गुना की कुल आबादी 24 लाख 93 हज़ार से भी अधिक है।

अब तक हुए 17 चुनावों का ब्यौरा

गुना सीट पर अब तक कुल 17 चुनाव हुए हैं। जिसमें काँग्रेस का पलड़ा भारी तो रहा परंतु इसको एकतरफा किया जाए तो इस लोकसभा सीट से पलड़ा भारी रहा सिंधिया परिवार का ही। राजनीति दलों का समीकरण देखा जाए तो काँग्रेस 17 में से 9 बार चुनाव जीती, भाजपा 5 बार, एक – एक बार जनसंघ और स्वतंत्र पार्टी। पार्टी के भेद को हटाया जाए तो सिंधिया परिवार ने 17 में से 13 बार अपने राजनीतिक दलों को जीत दिलवाई।

ब्राह्मण – यादव हैं जीत का आधार?

इस सीट पर जातीय आधार देखा जाए तो 80 हज़ार के लगभग (LOKSABHA ELECTION2024 GUNA SEAT) ब्राह्मण हैं, जबकि यादव 73 हज़ार का आंकड़ा छू चुके हैं। अनुसूचित जनजाति 2 लाख 30 हज़ार का आंकड़ा पार करती है। 60 हज़ार कुशवाह और 32 हज़ार के करीब रघुवंशी हैं। 20 हज़ार मुस्लिम और 12 हज़ार वैश्य और जैन मतदाता गुना सीट की किस्मत लिखते हैं।

ज्योतिरादित्य सिंधिया

1971 में मुंबई में जन्मे ज्योतिरादित्य, माधव राव सिंधिया और माधवी राजे सिंधिया के बेटे हैं। पारिवारिक विरासत में ही राजनीति के गुण ज्योतिरादित्य को मिले हैं। माता – पिता और उससे पहले से राजपरिवार से आने वाला हर (LOKSABHA ELECTION2024 GUNA SEAT) शख्स राजनीति में प्रभाव रखता था। 18 दिसंबर 2001 में काँग्रेस की छतरी के नीचे आए सिंधिया पिता की दुर्घटना में मृत्यु के बाद सदन में पहुंचे। हालांकि काँग्रेस की केंद्र सरकार और प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह के कार्यकाल में कई अलग अलग मंत्रालयों में मंत्री रहे। 2007 से 2014 का समय ज्योतिरादित्य के लिए सुनहरा समय था। 2019 के बाद समय बदला। अब सिंधिया पूरी कोशिश में है कि इस चुनाव के बाद समय कि हवाएँ फिर से खुद के पक्ष में बहाई जाए।

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