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Jaipur Lok Sabha Seat: भाजपा को राम से तो कांग्रेस को श्याम से है उम्मीद

Jaipur Loksabha Seat:जयपुर। जयपुर से करीब 90 किमी दूर खाटूश्यामजी की नगरी है। यहां भीम के पौत्र और घटोत्कच के पुत्र बर्बरीक की खाटूश्यामजी के रूप में पूजा होती है। बर्बरीक ने तय किया था कि वे महाभारत के युद्ध में उस पक्ष की ओर से लड़ेंगे जो युद्ध हार रहा होगा। भगवान कृष्ण को […]

Jaipur Loksabha Seat:जयपुर। जयपुर से करीब 90 किमी दूर खाटूश्यामजी की नगरी है। यहां भीम के पौत्र और घटोत्कच के पुत्र बर्बरीक की खाटूश्यामजी के रूप में पूजा होती है। बर्बरीक ने तय किया था कि वे महाभारत के युद्ध में उस पक्ष की ओर से लड़ेंगे जो युद्ध हार रहा होगा। भगवान कृष्ण को पता था कि युद्ध का परिणाम क्या होगा और बर्बरीक के किसके पक्ष में जाने की संभावना है। इसलिए कृष्ण ने उनसे शीश का दान मांग लिया। शीश के इस दानी की अब खाटूश्यामजी के रूप में पूजा होती है और उन्हें हारे का सहारा माना जाता है। जो एक उम्मीद जगाता है। जयपुर लोकसभा सीट पर चुनाव में इस बार खाटूश्यामजी की ज्यादा चर्चा है।

नाउम्मीद प्रतापसिंह को हारे का सहारा

जयपुर लोकसभा सीट से कांग्रेस उम्मीदवार पूर्वमंत्री प्रतापसिंह खाचरियावास इस बार हारे का सहारा के नाम पर ही चुनाव लड़ रहे हैं। खुद को भगवान राम का वंशज बताने वाले प्रताप सिंह हर सभा में खाटूश्यामजी को याद करते हैं। विधानसभा चुनाव में सिविललाइंस सीट से हार ने उनका मनोबल इस तरह तोड़ दिया कि लोकसभा चुनाव को लेकर वह खुद भी ज्यादा उम्मीदें नहीं पाल रहे हैं। जयपुर लोकसभा सीट का समीकरण ही ऐसा है कि प्रतापसिंह चुनाव में कांग्रेस के उम्मीदवार हैं, पर जीत को लेकर नाउम्मीद ही हैं। कांग्रेस ने पहले सुनील शर्मा को टिकट दिया था, लेकिन उन पर विवाद हुआ तो प्रतापसिंह को चुनाव लड़ने की जिम्मेदारी दे दी। वे ना चाहते हुए भी मैदान में उतर गए। प्रतापसिंह अपने प्रचार में हारे का सहारा का वास्ता देने के साथ दो बातों पर जोर देते हैं। एक तो वे बदलाव की पैरोकारी करते हैं कि रोटी पलटनी जरूरी है नहीं तो जल जाएगी। दूसरा आम लोगों की समस्याएं गिनाने से नहीं चूकते।

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चार दशकों से ब्राम्हण ही जीते

पिछले चार दशकों में हुए 10 चुनावों में कांग्रेस सिर्फ दो बार 1984 और 2009 में यहां से जीत सकी है। पिछली दो लगातार जीत और फिर इस बार के विधानसभा चुनाव में संसदीय क्षेत्र की 8 में से 6 सीटें जीतने के साथ भाजपा आश्वस्त है कि इस बार भी जयपुर में भगवा ही लहराएगा। पिछले दो बार के सांसद रामचरण बोहरा का टिकट काट कर पार्टी ने मंजू शर्मा को उम्मीदवार बनाया है। मंजू भाजपा के बड़े ब्राम्हण चेहरे रहे भंवरलाल शर्मा की बेटी हैं। जातीय समीकरण में 5 लाख ब्राम्हण वोटरों के साथ वे बेहतर उम्मीदवार हैं। राजपूत समाज के करीब पौने दो लाख वोट हैं, प्रताप सिंह राजपूत हैं। सीट पर 4 लाख मुस्लिम, तीन लाख वैश्य, 1 लाख 20 हजार माली और 1 लाख एससी वोटर भी हैं। पिछले 10 चुनावों से यहां ब्राम्हण सांसद ही चुना जाता रहा है। 1089 में गिरधारी लाल भार्गव जयपुर के महाराजा भवानी सिंह को हरा चुके हैं।

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मोदी और महिला से भाजपा को उम्मीद

सीट के इतिहास ने ही मंजू शर्मा को आश्वस्त कर रखा है, कि वे लाखों वोटों से जीतेंगी और सौ फीसदी जीतेंगी। वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और खुद के महिला होने के नाम पर वोट मांगती हैं। पिता की राजनीतिक विरासत पर लगे परिवारवाद के आरोपों से मंजू शर्मा बिलकुल इत्तफाक नहीं रखती हैं। वे कहती हैं कि परिवारवाद की परिभाषा अलग हैं। वे गांधी परिवार की तरह ऊपर से नहीं आई हैं। उन्होंने आम कार्यकर्ता से ज्यादा काम किया है। वैसे भाजपा को यहां वोटों के धार्मिक आधार पर ध्रुवीकरण से पूरी उम्मीद है। इसलिए केंद्रीय मंत्री अमित शाह ने पहली बार जयपुर में रोड शो किया। वे उसी मार्ग से गुजरे जहां से विधानसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुजरे थे।

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